मल्हार में राम
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बिलासपुर जिले के मस्तुरी विकासखंड अंतर्गत नगरपंचायत मल्हार है।
दक्षिण कोसल का सबसे प्राचीनतम नगर मल्हार अपने पुरावैभव के लिए जगत प्रसिद्ध है। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के द्वारा यहाँ का इतिहास, ईसा पूर्व एक हजार साल से अब तक निरंतर बताया गया है । मल्हार के स्थानीय निवासी स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह ठाकुर जी के निजी संग्रह से तथा सागर विश्वविद्यालय तथा उत्खनन विभाग नागपुर द्वारा मल्हार में किए गए उत्खननों से भी इस बात की पुष्टि होती है।
पौराणिक ग्रंथों के अलावा भी इस क्षेत्र के बारे में वाल्मिकी रामायण तथा महाभारत में भी मल्हार के
विभिन्न जगहों के बारे में उल्लेख है। जिसके बारे में अनेक दंतकथाएँ हैं। ऐसे ही एक दंतकथा है यहाँ के परमेसरा तालाब के बारे में , जिसका प्राचीन नाम पंचाप्सरा था । जो अपभ्रंष होकर परमेसरा हो गया है। त्रेतायुग में यह क्षेत्र पंचाप्सर तीर्थ कहलाता था। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के एकादश सर्ग में इस संबंध में विस्तार से वर्णन किया गया है। उस समय मल्हार के वर्तमान परमेसरा तालाब का विस्तार एक योजन तक था। जो सिकुड़ते-सिकुड़ते अब मात्र 39 एकड़ का ही रह गया है। इस तालाब की दंतकथाओं में से एक यह भी है कि इस तालाब के मध्य में सोने का एक महल है। जिनमें एक ऋषिराजा अपने पाँच रानियों के साथ निवास करते हैं। प्राचीन काल में यहाँ निवास करने वाली रानियाँ कमल के पत्ते और फूलों में बैठकर तालाब के किनारे स्थित शिवमंदिर में आकर शिव जी की पूजा करती, फिर वैसे ही पुनः तालाब के मध्य बने सोने के महल में लौट जातीं, वहाँ जाकर गायन वादन करतीं थीं । जिनकी आवाज अब तक अनेकों ग्रामीण सुन चुके हैं।
अचला सप्तमी के दिन इस तालाब का शीतल जल गंगा सहित अनेकों तीर्थों का यहाँ समागम होता है। उस दिन यदि इस तालाब में स्नानकर यहाँ से जल लेकर पातालेश्वर महादेव का अभिषेक करने से भू-मण्डल में स्थित सभी तीर्थों में स्थान करने का फल मिलता है।
ते गत्वा दूरमध्वानं लम्बमाने दिवाकरे ।
ददृशुः सहिता रम्यं तटाकं योजनायुतम् ।।
- वा.रा. अर.कां.11/5
अर्थात् दूर तक यात्रा तय करने के बाद जब सूर्य अस्ताचल को जाने लगे, तब उन तीनों ने एक साथ देखा- सामने एक बड़ा ही सुंदर तलाब है, जिसकी लंबाई-चौड़ाई एक एक योजन की जान पड़ती है।
पद्मपुष्करसम्बाधं गजयूथैरलंकृतम् ।
सारसैर्हंसकादम्बैः संकुलंजलजातिभिः ।।
-वा.रा.अर.कां.11/6 अर्थात् वह सरोवर लाल और श्वेत कमलों से भरा हुआ था । उसमें क्रीड़ा करते हुए झुंड के झुंड हाथी उसकी शोभा बढ़ाते थे। तथा सारस ,राजहंस और कलहंस आदि पक्षियों एवं जल में उत्पन्न होने वाले मत्स्य आदि जंतुओं से व्याप्त दिखाई देता था।
प्रसन्नसलिले रम्ये तस्मिन् सरसि शुश्रुवे ।
गीतवादित्रनिर्घोषो न तु कश्चन दृश्यते।।7।।
ततः कौतुहलाद् रामो लक्ष्मणश्च महारथी।
मुनिं धर्मभृतं नाम प्रष्टुं समुपचक्रमे ।।8।।
इदमत्यद्भुतं श्रुत्वा सर्वेषां नो महामुने ।
कौतूहलं महज्जातं किमिदं साधु कथ्यताम् ।।9।।
- वा.रा. अर.कां.सर्ग 11-7/8/9
अर्थात् स्वच्छ जल से भरी हुई उस रमणीय सरोवर में गाने बजाने का शब्द सुनाई देता था, किंतु कोई दिखाई नहीं दे रहा था। तब श्री राम और महारथी लक्ष्मण ने कौतूहलवस अपने साथ आए हुए धर्मभृत नामक मुनि से पूछना आरंभ किया। महामुने ! यह अत्यंत अद्भुत संगीत की ध्वनि सुनकर हम सब लोगों को बड़ा कौतूहल हो रहा है यह क्या है, इसे अच्छी तरह बताइए। तब धर्मभृत मुनि ने कहा कि-
इदं पञ्चाप्सरो नाम तटाकं सार्वकालिकम्।
निर्मितं तपसा राम मुनिना माण्डकर्णिना ।।11।।
स ही तेपे तपस्तीव्रं माण्डकर्णिर्महामुनिः ।
दशवर्षसहस्त्राणि वायुभक्षो जलाशये।।12।।
अर्थात् श्रीराम ! यह पंचाप्सर नामक सरोवर है, जो सर्वदा अगाध जल से भरा रहता है। माण्डकर्णि नामक मुनि ने अपने तप के द्वारा इसका निर्माण किया था। महामुनि माण्डकर्णि ने एक जलाशय में रहकर केवल वायु का आहार करते हुए दस सहस्त्र वर्षों तक तीव्र तपस्या की थी।
- वा.रा.अर.कां. सर्ग-11-11/12
ततः कर्तुं तपोविघ्नं सर्वदेवैर्नियोजिताः ।
प्रधानाप्सरसः पञ्च विद्युच्चलितवर्चसः ।।15।।
अप्सरोभिस्ततस्ताभिर्मुनिर्दृष्टपरावरः ।
नीतो मदनवश्यत्वं देवानां कार्यसिद्धये।।16।।
ताश्चैवाप्सरसः पञ्च मुनेः पत्नीत्वमागताः।
तटाके निर्मितं तासां तस्मिन्नन्तर्हितं गृहम् ।।17।।
तत्रैवाप्सरसः पञ्च निवसन्त्यो यथासुखम् ।
रमयन्ति तपोयोगान्मुनिं यौवनमास्थितम् ।।18।।
तासां संक्रीडमानानामेष वादित्रनिःस्वनः ।
श्रूयते भूषणोन्मिश्रो गीतशब्दो मनोहरः ।।19।।
अर्थात् तब उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए सम्पूर्ण देवताओं ने पाँच प्रधान अप्सराओं को नियुक्त किया, जिनकी अंगकांति विद्युत के समान चंचल थी। तदन्तर जिन्होंने लौकिक एवं पारलौकिक धर्माधर्म का ज्ञान प्राप्त कर लिया था, उन मुनि को उन पाँच अप्सराओं ने देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए काम के अधीन कर दिया। मुनि की पत्नी बनी हुई वे ही पाँच अप्सराएँ यहाँ रहती हैं। उनके रहने के लिए इस तालाब के भीतर घर बना हुआ है, जो जल के अंदर छिपा हुआ है । उसी घर में सुखपूर्वक रहती हुई पाँचों अप्सराएँ तपस्या के प्रभाव से युवा अवस्था को प्राप्त हुए मुनि को अपनी सेवाओं से संतुष्ट करती हैं । क्रीड़ा-विहार में लगी हुई उन अप्सराओं के ही वाद्यों की यह ध्वनि सुनाई देती है, जो भूषणों की झनकार के साथ मिली हुई है। साथ ही उनके गीत का भी मनोहर शब्द सुन पड़ता है।
इस तरह त्रेतायुग में मल्हार का परमेसरा तालाब का क्षेत्र पञ्चाप्सर तीर्थ के नाम से जाना जाता है। जिस दिन राम इस तीर्थ में आए थे, वह अचला सप्तमी के ही दिन था।उसी की याद में मल्हार के इस प्रसिद्ध तालाब में एक दिन सम्पूर्ण तीर्थों का निवास स्थान माना जाता है। उसी दिन से शिव और राम को मानने वाले अचला सप्तमी के दिन इस पंचाप्सर तीर्थ स्थान में स्नान कर यहाँ से जल लेकर पातालेश्वर महादेव में जलाभिषेक कर सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त करते हैं।
हरि सिंह क्षत्री (मल्हारवाले), मार्गदर्शक जिला पुरातत्त्व संग्रहालय, कोरबा