गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

मैं कोरबा हूँ

कोरबा जो मैंने देखा-जाना
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मैं कोरबा हूँ
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मैं कोरबा हूँ, प्रकृति की अनमोल खजाना मुझमें हैं,
मेरे कुछ नाम हैं,
कोरबा,कौन्तणिका ,कोरबाडीह,ऊर्जानगरी आदि
और ये सारे नाम, मुझे मेरे गुणों ने दिया है।
२५मई१९९८ को जब मैंने जन्म लिया 
उस समय मैं मध्यप्रदेश का बेटा था।
तब भी मैं अपनी जननी का दुलारा था।
पर मेरे उद्भव के बाद सन् २०००में
जब मुझे, नयी मां छत्तीसगढ़ महतारी मिली
तब मुझे नयी मां का ऎसा प्यार मिला
मैं हर तरह से फलने-फूलने लगा‌
मुझमें एक लोकसभा और चार विधानसभाएँ हैं।
पर यही मेरा परिचय नहीं,
मेरा मुकुट मैकलपर्वत की श्रेणियाँ हैं
मानगुरु,चैतुरगढ़, पुटका पहाड़
 जैसे उन्नत शिखर मेरी वक्षस्थल
और नसें हसदेव,अहिरन,तान,चोरनयी  और सोन जैसी नदियाँ हैं।
मेरी लटें केंदयी,चामा,बलसेंधा,रानीझरिया,
गोविन्दझुंझा और परसाखोल जैसे झरने हैं।
तो,बांगोबांध जलाशय मेरी उदर है 
और दर्रीबराज मेरा सहोदर है
शासकीय महाविद्यालय, मिनीमाता, कमला नेहरू,
अग्रसेन, आईटी और पॉलिटेक्निक जैसी 
 अनेकों शिक्षण संस्थाएंँ मेरी दिमाग हैं।
 सर्वमंगला देवि,चैतुरगढ़, पाली,
मड़वारानी, कनकी,कोसगाई,
हनुमानगढ़ी, देवपहरी, सतरेंगा, 
बुका,केंदयी ,टिहलीसराई, नरसिंहगंगा।
मातीन,बांगो, जुबलीपार्क,
चामा जलप्रपात दिन में लगते डार्क।
सुअरलोट, काॅफीप्वाईंट ,परसाखोल
अपनी सुंदरता के बजाते ढोल।
कोयला, अभ्रक ,और बॉक्साइट,
क्वार्ट्ज, स्फटिक और डोलोमाइट,
आधे भारत को मैं देता लाईट ।
ये बातें तो सब जानते हैं,
मेरी खुबियां पहचानते हैं,
आओ आओ अपना हाल सुनाऊँ
अपनी वही पुरानी इतिहास बताऊंँ
चारों युगों की कहानी मुझमें
क्या सुनने की ज़ज़बा है तुझमें
त्रेतायुग में राम आये
सुअरलोट (पंचवटी) से सिया चुरवाये
बन-बन अटके भटके
सियाराम के भाग खटके।
द्वापर में बब्रुवाहन का राज यहाँ 
हस्ति लाक्षागृह की बात यहाँ
सुअरलोट में सीताहरण पहली कहानी
गेरुवे रंग में रंगी ,अतीत की कहानी
आदिमानव भी यहाँ वन वन भटके
आखेटक बन शिकार करके
बुंदेली, केरा, परसाखोला 
कोलगा,आदि शंकरखोला
आदिमानव यहाँ रहते थे
आसपास शिकार करते थे
और सुअरलोट जैसे पहाड़ियों में
चित्र बनाते रहते थे
शैव,शाक्त और वैष्णव यहाँ
बौद्ध, जैन और इस्लाम यहाँ
अतीत से अभ्यागत तक 
सर्वधर्म का सम्मान यहाँ
नगोई ,तुमान, पाली,कनकी,शंकरखोला
रचे बसे जहां महादेव भोला ।
सर्वमंगला, महामाया और मड़वारानी
कोसगाई, देवी शक्तियों की यहाँ कहानी
सीतामढ़ी, सुअरलोट, देवपहरी, बुंदेली,
वैष्णव धर्म की है यहाँ कहानी ।
बाल्को, एनटीपीसी, सी एस ई बी,
लैंको,वन्दना,मड़वारानी, विद्युत की जननी
रजगामार ,कुसमुण्डा,कोरबा, गेवरा,दीपका आदि की खदानें
ऎसे कौन हैं, जिनकी कोल न जानें
आओ-आओ जानो पहचानो
धरती के भाइयों-बहनों 
मैं कोरबा हूँ, 
सदैव खुशहाल रहता हूं,
आप सभी मित्रों का स्वागत करता हूँ ।
===हरि सिंह क्षत्री,कोरबा,9827189845

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

आदर्श रामलीला समिति सकरी, बिलासपुर

आदर्श रामलीला समिति सकरी की शुरुआत 70 वर्ष पहले भरत वस्त्रकार, नर्मदा कोरी एवं उदयराम साहू आदि लोगों ने मिलकर प्रारंभ किया था। उस समय गाँव में रामलीला की बड़ी ललक थी। लोगों में रामायण के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थी। अधिकांश संवाद गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के दोहे और चौपाइयों पर आधारित थे  रामलीला के संवादों को ऐसा लिखा जाता था कि जनमानस तक संवाद आसानी से समझा जा सके।
      सकरी का रामलीला बाजारपारा में स्थित मंच पर किया जाता था । प्रारंभ में सकरी का रामलीला 1 माह तक चलता था। उस समय गाँव के बड़े बुजुर्ग अपने साथ बच्चों को लेकर जाते थे। रामलीला , दशहरे के समय खेला जाता था। रावणवध का दृश्य दशहरे के दिन ही कराए जाने की परंपरा थी ।
        ग्रामीण खेती किसानी और अन्य दैनिक कामों से मुक्त होकर रामलीला देखने का आनंद लेते थे। इसलिए इसका समय सायं 6:00 से 9:00 तक रखा जाता था। मंच में प्रकाश व्यवस्था के लिए गैस लाइट की व्यवस्था की जाती थी  फिर जब गाँव में बिजली आई ,तो रामलीला के प्रति लोगों की उत्सुकता और बढ़ी। 
       फिर रामलीला 15 दिन का होने लगा । उसके बाद 5 दिन का होने । लगा वर्तमान में यह मात्र 1 दिन का ही होकर रह गया है ।रामलीला शौकिया या व्यवसायिक न होकर अपनी संस्कृति को प्रचारित करने, राम के प्रति भक्ति और रामायण के आदर्श पात्रों के चरित्र को आत्मसात करना और करवाना था। इससे आमदनी प्राप्त हो, ऐसा प्रावधान नहीं था।  रामलीला का खर्च गाँव वालों के द्वारा प्रदान किए गए चढ़ोतरी से होता था । कालांतर में रामलीला से अधिक आमदनी नहीं होने कारण, रामलीला के प्रति उदासीनता पात्रों में आने लगी। पहले पात्र निस्वार्थ भाव से, अपने से आगे बढ़कर रामलीला के पात्र बनना चाहते थे। रामलीला में राम ,लक्ष्मण, हनुमान और रावण के पात्रों को निभाने की ज्यादा ललक, लोगों में रहती थी ।
        रामलीला के लिए वेशभूषा उत्तर प्रदेश से मंगाया जाता था । प्रारंभ में मुखोटे भी वहीं से ही खरीदा जाता था। मुखौटे खरीदने के लिए धन की व्यवस्था चमरूसाव  जी के द्वारा उपलब्ध कराया गया था।  मुखौटे हनुमान, रावण और अन्य राक्षस पात्रों के लिए उपयोग किया जाता था। श्रृंगार के लिए मुकुट धारण किया जाता था। गले में नकली फूलों का हार और गहनें धारण किए  जाते थे । चेहरे में चमक और गोरापन लाने के लिए मुर्दालशंख को घिसकर, उसका लेप किया जाता था। फिर काजल लगाकर आंखों को सुंदर बनाया जाता था। माथे पर तिलक धारण करते थे। चंदन और रोली लगाते थे। कुमकुम, हल्दी और रोली चंदन का भी प्रयोग किया जाता था।
      वाद्य यंत्रों में भी पेटी -उदय राम साहू जी बजाते थे। वे व्यास जी का काम भी करते थे। तबला - केजाराम साहू ,बांसुरी वादन- छेदी लाल साहू, मंजीरा- कुशल रजक जी बजाते आ रहे हैं।
       20 वर्ष पहले राम का पात्र रामकुमार दुबे, लक्ष्मण -वीरेंद्र दुबे ,मेघनाथ- अनिल चौबे , रावण- महादेव रजक, विभीषण- जीतनराम साहू,हनुमान- बेदूराम साहू, जोकर- ओंकार कोरी तथा सूत्रधार राकेश तिवारी जी बनते थे।     वर्तमान में राम का पात्र अमन साहू, लक्ष्मण-प्रखर सोनी,  रावण- मनोज साहू , विभीषण-जीतनराम साहू, हनुमान- जितेंद्र साहू और भगद साहू, विदूषक- रमेश सोनी तथा व्यास उदयराम साहू जी ही बनते हैं।
      दशहरे के दिन क्षेत्रीय विधायकआते हैं।  गतवर्ष क्षेत्रीय विधायक ने आदर्श रामलीला समिति सकरी को विधायक रश्मि ठाकुर ने 25000/- देने की घोषणा की है। 
 साभार - मनोज साहू,
हरि सिंह क्षत्री 
मार्गदर्शक 
जिला पुरातत्त्व संग्रहालय ,कोरबा
9827189845