रविवार, 20 फ़रवरी 2022

आदर्श रामलीला समिति सकरी, बिलासपुर

आदर्श रामलीला समिति सकरी की शुरुआत 70 वर्ष पहले भरत वस्त्रकार, नर्मदा कोरी एवं उदयराम साहू आदि लोगों ने मिलकर प्रारंभ किया था। उस समय गाँव में रामलीला की बड़ी ललक थी। लोगों में रामायण के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थी। अधिकांश संवाद गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के दोहे और चौपाइयों पर आधारित थे  रामलीला के संवादों को ऐसा लिखा जाता था कि जनमानस तक संवाद आसानी से समझा जा सके।
      सकरी का रामलीला बाजारपारा में स्थित मंच पर किया जाता था । प्रारंभ में सकरी का रामलीला 1 माह तक चलता था। उस समय गाँव के बड़े बुजुर्ग अपने साथ बच्चों को लेकर जाते थे। रामलीला , दशहरे के समय खेला जाता था। रावणवध का दृश्य दशहरे के दिन ही कराए जाने की परंपरा थी ।
        ग्रामीण खेती किसानी और अन्य दैनिक कामों से मुक्त होकर रामलीला देखने का आनंद लेते थे। इसलिए इसका समय सायं 6:00 से 9:00 तक रखा जाता था। मंच में प्रकाश व्यवस्था के लिए गैस लाइट की व्यवस्था की जाती थी  फिर जब गाँव में बिजली आई ,तो रामलीला के प्रति लोगों की उत्सुकता और बढ़ी। 
       फिर रामलीला 15 दिन का होने लगा । उसके बाद 5 दिन का होने । लगा वर्तमान में यह मात्र 1 दिन का ही होकर रह गया है ।रामलीला शौकिया या व्यवसायिक न होकर अपनी संस्कृति को प्रचारित करने, राम के प्रति भक्ति और रामायण के आदर्श पात्रों के चरित्र को आत्मसात करना और करवाना था। इससे आमदनी प्राप्त हो, ऐसा प्रावधान नहीं था।  रामलीला का खर्च गाँव वालों के द्वारा प्रदान किए गए चढ़ोतरी से होता था । कालांतर में रामलीला से अधिक आमदनी नहीं होने कारण, रामलीला के प्रति उदासीनता पात्रों में आने लगी। पहले पात्र निस्वार्थ भाव से, अपने से आगे बढ़कर रामलीला के पात्र बनना चाहते थे। रामलीला में राम ,लक्ष्मण, हनुमान और रावण के पात्रों को निभाने की ज्यादा ललक, लोगों में रहती थी ।
        रामलीला के लिए वेशभूषा उत्तर प्रदेश से मंगाया जाता था । प्रारंभ में मुखोटे भी वहीं से ही खरीदा जाता था। मुखौटे खरीदने के लिए धन की व्यवस्था चमरूसाव  जी के द्वारा उपलब्ध कराया गया था।  मुखौटे हनुमान, रावण और अन्य राक्षस पात्रों के लिए उपयोग किया जाता था। श्रृंगार के लिए मुकुट धारण किया जाता था। गले में नकली फूलों का हार और गहनें धारण किए  जाते थे । चेहरे में चमक और गोरापन लाने के लिए मुर्दालशंख को घिसकर, उसका लेप किया जाता था। फिर काजल लगाकर आंखों को सुंदर बनाया जाता था। माथे पर तिलक धारण करते थे। चंदन और रोली लगाते थे। कुमकुम, हल्दी और रोली चंदन का भी प्रयोग किया जाता था।
      वाद्य यंत्रों में भी पेटी -उदय राम साहू जी बजाते थे। वे व्यास जी का काम भी करते थे। तबला - केजाराम साहू ,बांसुरी वादन- छेदी लाल साहू, मंजीरा- कुशल रजक जी बजाते आ रहे हैं।
       20 वर्ष पहले राम का पात्र रामकुमार दुबे, लक्ष्मण -वीरेंद्र दुबे ,मेघनाथ- अनिल चौबे , रावण- महादेव रजक, विभीषण- जीतनराम साहू,हनुमान- बेदूराम साहू, जोकर- ओंकार कोरी तथा सूत्रधार राकेश तिवारी जी बनते थे।     वर्तमान में राम का पात्र अमन साहू, लक्ष्मण-प्रखर सोनी,  रावण- मनोज साहू , विभीषण-जीतनराम साहू, हनुमान- जितेंद्र साहू और भगद साहू, विदूषक- रमेश सोनी तथा व्यास उदयराम साहू जी ही बनते हैं।
      दशहरे के दिन क्षेत्रीय विधायकआते हैं।  गतवर्ष क्षेत्रीय विधायक ने आदर्श रामलीला समिति सकरी को विधायक रश्मि ठाकुर ने 25000/- देने की घोषणा की है। 
 साभार - मनोज साहू,
हरि सिंह क्षत्री 
मार्गदर्शक 
जिला पुरातत्त्व संग्रहालय ,कोरबा
9827189845

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