सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

क्षत्रिय वंश


चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. गहलोत/सिसोदिया २. राठौड ३. बडगूजर/सिकरवार ४. कछवाह ५. दिक्खित ६. गौर ७. गहरवार ८. डोगरा ९.बल्ला १०.वैस

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.झाला७.सिलार८.वनाफ़र ९.कटोच१०. सोमवंशी

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.कनपुरिया३.गर्गवंशी(हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त के वंशज)४.दायमा५.गौतम६.अनवार (राजा जनक के वंशज)७.दोनवार८.दहिया(दधीचि ऋषि के वंशज)९.चौपटखम्ब १०.काकन११.शौनक १२.बिसैन

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.शम्भरी ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाज, कश्यपसूर्यमहाराजा राजपूताना झारखंड
२.गहलोतकश्यप, बैजवापेडसूर्यमेवाड़ और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाकश्यप,बैजवापेडगहलोतमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहागौतम,वशिष्ठ,मानवसूर्यमहाराजा जयपुर
५.राठौडगौतम,कश्यप,भारद्वाज,शान्डिल्य,अत्रिगहरवारमहाराजा जोधपुर ,बीकानेर,किशनगढ़ और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्द्रप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.खेरवावंशीकश्यपचन्द्रराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययमवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जावतअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरअत्रय, व्याघ्र, गार्गेयचन्द्रपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रचन्द्रगोरखपुर
१४.सत्पोखरियाभारद्वाजराठौड(चाँपावत)मऊ जिला घोसी, इंदारा
१५.परिहार, वरगाहीकौशल्य, कश्यपअग्निबांदा जिला, रीवा राज्य में बघेलखंड
१६.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१७.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१८.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१९.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
२०.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२१.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२२.भदौरियावत्सअग्निनौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२३.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२४.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२५.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२६.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२७.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२८.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२९.वैसभारद्वाजसूर्यआजमगढ उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
३०.गहरवारकश्यप, भारद्वाजसूर्यमाडा, हरदोई, वनारस, उन्नाव, बांदा पूर्व
३१.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३२.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३३.बिसेनअत्रय,वत्स,भारद्वाज,पाराशर,शान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ महराजगंज (निचलौल के उत्तर क्षेत्र के समीप) हैं
३४.निकुम्भवशिष्ठ,भारद्वाजसूर्यमऊ गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३५.श्रीनेतभारद्वाजनिकुम्भगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३६.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३७.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३८.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३९.झालामरीच, कश्यप, मार्कण्डेचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
४०.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४१.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४२.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४३.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर ,कानपुर, फ़र्रुखाबाद, बुन्देलखंड, पंजाब, गुजरात
४४.जनवारकौशल्यचन्द्रवंशीबलरामपुर अवध के जिलों में
४५.बहेलियाभारद्वाज,वैस (उप जाति सिसोदिया )की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४६.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव, बस्ती, प्रतापगढ, जौनपुर, रायबरेली ,बांदा
४७.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४८.सिकरवारभारद्वाज, सांक्रित्यनबढगूजरग्वालियर, आगरा, गाजीपुर और उत्तरप्रदेश में
४९.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
५०.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५१.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा ,आगरा ,धौलपुर
५२.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५३.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५४.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५५.भृगुवंशीभार्गवब्रह्मक्षत्रियवनारस, बलिया, आजमगढ, गोरखपुर
५६.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियआजमगढ, नरसिंहपुर सुल्तानपुर,अवध,बस्ती,फैजाबाद
५७.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५८.ननवगकौशिकचन्द्रजौनपुर जिला
५९.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
६०.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६१.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६२.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६३.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६४.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६५.पुण्डीरकपिल, पुलस्त्यब्रह्मक्षत्रियपंजाब, गुजरात, रींवा, यू.पी.
६६.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६७.कटोचकश्यपचन्द्रराजानादौन कोटकांगडा
६८.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६९.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
७०.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७१.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७२.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७३.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७४.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७५.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७६.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७७.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७८.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७९.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
८०.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८१.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८२.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८३.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८४.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८५.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८६.दहियागौतमब्रह्मक्षत्रियमारवाड में जोधपुर
८७.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८८.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८९.बल्लाभारद्वाज,कश्यपसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
९०.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९१.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९२.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९३.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९४.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९५.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९६.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९७.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९८.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९९.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
१००.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१०१.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०२.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०३.दोबर(दोनवार)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०४.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०५.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०६.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०७.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०८.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०९.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
११०.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
१११.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
११२.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११३.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११४.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११५.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११६.मौनसमौनकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११७.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११८.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११९.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
१२०.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२१.तरकडकश्यपदिक्खित शाखाआगरा मथुरा
१२२.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२३.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२४.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२५.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२६.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२७.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२८.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२९.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१३०.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३१.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३२.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३३.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३४.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३५.खातीकश्यपदिक्खित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३६.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उदावतगौतमराठौडपाली
१३८.उजैनेश्रवणपंवारआरा डुमरिया
१३९.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१४०.दुर्गवंशीकश्यपदिक्खितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४१.बिलखरियाकश्यपदिक्खितप्रतापगढ उमरी राजा
१४२.डोगराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४३.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४४.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४५.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४६.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४७.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४८.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४९.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१५०.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५१.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५२.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५३.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५४.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी
१५५.शौनकशौनभ्रृगुवंशीइलाहाबाद
१५६.बघेलकश्यप या भारद्वाजसोलंकीरीवा राज्य में बघेलखंड
१५७.दिक्खितकश्यपसूर्यबुन्देलखंड
१५८.बंधलगोतीभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियअमेठी,सुल्तानपुर
१५९.कलहंसअंगिरसपरिहारप्रतापगढ,बहरायच,गोरखपुर,बस्ती
१६०.बेरुआरभारद्वाजतोमरबलिया,आजमगढ,मऊ





सोमवार, 6 मई 2024

मल्हार वासिनी माँ मल्लिका( माँ डिडिनेश्वरी)

छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे प्राचीनतम नगर मल्हार ,जिला मुख्यालय बिलासपुर से दक्षिण-पश्चिम में बिलासपुर से शिवरीनारायण मार्ग पर बिलासपुर से 17 किलोमीटर दूर मस्तूरी है, वहाँ से 14 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में जोंधरा मार्ग पर मल्हार नामक नगर है। यह नगर पंचायत 21• 55' उत्तरी अक्षांश और 82• 22' पूर्वी देशांतर पर स्थित है। मल्हार, कौशांबी से दक्षिण पूर्वी समुद्र तट की ओर जाने वाली प्राचीन मार्ग भरहुत, बांधवगढ़, अमरकंटक, मल्हार, सिरपुर होते हुए जगन्नाथ पुरी की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित है। मल्हार में समय-समय पर हुए उत्खनन एवं स्वर्गीय श्री गुलाब सिंह ठाकुर जी और स्वर्गीय श्री रघुनंदन प्रसाद पांडे जी को मल्हार से प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि मल्हार का इतिहास ईसा पूर्व एक हजार साल पहले से कलचुरी-मराठा काल तक का क्रमशः इतिहास मिलता है । जिसे प्रथम काल - ईसा पूर्व 1000 से मौर्य काल के पूर्व तक, दूसरा काल- मौर्य काल से सातवाहन-कुषाण काल तक ईसापूर्व 325 से 300 ईस्वी तक , तीसरा काल शरभपुरीय तथा सोमवंशी काल 300 से 650 ईसवी तक, चौथा काल- परवर्ती सोमवंशी काल 650 से 900 ईसवी तक, पांचवा काल- कलचुरी काल 900 से 13वीं शताब्दी तक और फिर बाद का छठाकाल के रूप में हम परवर्ती कलचुरी काल को निर्धारण कर सकते हैं।
     कलचुरियों के बाद मराठा और अंग्रेजों का भी शासन इस क्षेत्र में रहा। जिसे उतनी मान्यता नहीं दी जाती है। कलचुरी वंश के अंतिम शासक रघुनाथ सिंह जी को 1742 ईस्वी में नागपुर का रघुजी भोसले ने अपने सेनापति भास्कर पंत के नेतृत्व में इस क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था ।
 मल्हार अपनी शिल्पकला और विविधकलाओं के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। यह नगर शैव , शाक्त-, वैष्णव ,जैन और बौद्ध धर्म की शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भारतवर्ष की सबसे प्राचीनतम विष्णु जी की चतुर्भुजी प्रतिमा है। जिसमें ब्राम्ही लिपि में लेख है। जो इसा पूर्व दूसरी शताब्दी की है। मल्हार जहाँ विशालकाय शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध रहा है, वहीं अपनी शुक्ष्मकलाओं के लिए भी प्रसिद्ध रहा है ,पर मल्हार अपने जिस शिल्पकला के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है ,उनमें से एक है, मल्हारवासिनी माँ डिडिनेश्वरी देवी की प्रतिमा।
        माँ डिडिनेश्वरी एक लोकोत्तर प्रभावशाली दिव्य प्रतिमा है। वह मल्हार के कुछ अज्ञात साधकों के माध्यम से रचनात्मक कार्यों  तथा उनकेके उन्नयन हेतु प्रेरणा स्वरूप, स्वप्न में आकर कभी-कभी मार्गदर्शन दिया करती हैं। 4* 2*1 फीट की माँ , काली ग्रेनााइट पत्थर पर निर्मित है। इस प्रतिमा को डॉक्टर गोमती प्रसाद शुक्ला जी, सहायक संचालक शिक्षा, रायगढ़ ने मल्हार महोत्सव 1988 की स्मारिका के अपने आलेख में चौथी शताब्दी की प्रतिमा माना है। इसका बाद में पुरातत्त्वविदों  ने खंडन करते हुए इसे कलचुरी कालीन प्रतिमा माना है। परंतु यह सर्वमान्य है कि यह पुरातत्त्वविदों ने इसे विश्व की श्रेेेेष्ठतम मर्ति माना है।
     अंजलिबद्ध, ध्यानावस्थित, प्रशांतमुद्रा में अत्यंत आकर्षण की पूंजिभूत राशि, इसकी विशेषताएँ हैं। इस देवी की दोनों बाजू में 3-3 और नीचे में भी तीन देवियों का अंकन हैं। देवी प्रतिमा के बारे में विद्वानों में मत भिन्नता है। कुछ विद्वान इसे दुर्गा का ही रूप मानते हैं । तो कुछ विद्वानों ने इन्हें शिव की परित्यक्ता सुत स्वीकार किया है। कुछ मनिषियों ने इन्हें बुद्ध की पत्नी यशोधरा माना है किंतु देश के अनुरूप दुर्गा (महामाया) का रूप ही अधिक तर्कसंगत लगता है ।यह गोमती प्रसाद शुक्ल जी ने माना है । 
    कलचुरी शासकों (जिन्हें कटच्युरी या कलत्सुरि भी कहा जाता है ) की आराध्या देवी ग्रुप में भी इनकी प्रसिद्धि है। मान्यता है कि मल्हार नगर को राजा वेणु ने बसाया था। कुछ विद्वानों ने इसी कारण से राजा वेणु कि अराध्या के रूप में , इष्टदेेेवी के रूप में भी माना है । इन्हीं की कृपा से राजा वेणु का यश लोक में व्यापक हुआ और उनकी तपः ज्योति ,देव लोक तक पहुँची । राजा वेणु के यश से  मल्हार में स्वर्ण वर्षा हुई थीी । उस घटना की पुष्टि यहाँ के कृषकों द्वारा यदा कदा स्वर्ण प्राप्ति से होती है।
      महाभारत में उल्लेखित दुर्गा के सहस्त्रों नामों में से एक यह एक नाम है ।जो अपभ्रंष रूप में प्रसिद्ध हो गया है। ग्रामीण अंचल में कुँवारे लड़कों को डड़वा या डीड़वा कहा जाता है। उसी तरह कुँवारी लड़कियों को डिड़वी, डिंडिन, या डिंडन कहा जाता है। मल्हार में यह निषाद समाज में और अन्य समाजों में प्रचलित शब्द है । और चूँकि यह देवी क्योंकि निषाद समाज द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया था तो उनकी आराध्या देवी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्विनी रूप में यह पार्वती की प्रतिमा डिडिनेश्वरी रूप में प्रसिद्ध हो गयी। तपोमुद्रा में यह स्पष्ट है कि यह तपस्यारत पार्वती की प्रतिमा है । यद्यपि पार्वती जी की तपोभूमि हिमालय है। फिर भी शिव की आराधना के निमित्त या किसी-किसी मनौती  के अभिप्राय से इस स्थल पर तपस्विनी एवं महामाया पार्वती की मूर्ति की स्थापना किया होगा।
        डिण्डिम उग्रनाद का पर्याय है। भगवान शंकर का डमरू भी डिण्डिम ध्वनिवाला है ।अतः शिव के साहचर्य से डिण्डिमनाद या  अनहद नाद की स्वामिनी पार्वती हुई । कालांतर में यह शब्द विकृत होकर डिण्डन हो गया । मल्हार के इस मंदिर परिसर में उत्खनन कार्य होने से परिसर में पुरातत्व अवशेष प्राप्त हुआ था। इससे इस स्थल पर एक विशालकाय मंदिर होने का भी पता चला है। जो काल के गर्त में समा गया है । इस मंदिर का प्रणाला उत्तर दिशा में मिला था। इस पर मकर बना हुआ है , जो एक कुंड में जाकर समाप्त होता है।
     पहले, मल्हार में, राज्य सरकार द्वारा संरक्षित एकमात्र स्मारक था। जिसे 18 अप्रैल 1991 की एक त्रासदी घटित हो जाने के कारण इस देवी प्रतिमा को चोरों द्वारा चुराकर इस प्रतिमा को  उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के नंबर के एक सफेद रंग की वैन के माध्यम से मैनपुरी ले जाया गया था। जिसे सरसों के खेत में गड्ढा खोदकर गाड़ दिया गया था।  जिसे तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सुशील मोदी और पुलिस अधीक्षक संत कुमार पासवान और थाना प्रभारी मंडावी जी के सजगता से दिनांक 19 मई 1991 को बरामद किया गया। उसे बिलासपुर सिविल लाइन थाने में दर्शन हेतु रखा गया ।उसे दिनांक 7 जून 1991 पूरे क्षेत्र के लोगों के द्वारा पदयात्रा करते हुए कीर्तन भजन और करमा नृत्य करते गाते-बजाते, गाने-बाजे की धून में मूर्ति को पुनः मल्हार लाकर प्राण प्रतिष्ठित किया गया। इस घटना का मैं प्रत्यक्षदर्शी था। और नाच भी रहा था।  तब से परिसर में 1-4 का नगर सैनिक सुरक्षा हेतु तैनात किया गया है ।
          सन् 2000 ईस्वी से मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। जो धीरे-धीरे पूर्णता की ओर अग्रसर है। इसे नए स्वरूप ,उड़ीसा के कारीगरों के द्वारा दिया जा रहा है । इससे मंदिर की कलात्मकता में वृद्धि हुआ है । मंदिर की सुंदरता बढ़ाने के लिए राजस्थान से लाए गए गुलाबी पत्थरों को तराश कर  मंदिर के दीवारों का निर्माण किया गया है । अब यह छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 'लोक न्यास ट्रस्ट माँ डिडिनेश्वरी मंदिर' के माध्यम संचालित किया जा रहा है। साल में दोनों ही नवरात्रियों  में यहाँ घी और तेल का भी मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित की जाती है। जिसकी संख्या हजारों में होती हैं। 
      अंग्रेजी शासनकाल में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा इस प्रतिमा को उठाने का अनेक बार प्रयास हुआ था। पर उस समय उन लोगों को तत्काल शारीरिक पीड़ा होने लगी थी ।  जिस कारण वे इस प्रतिमा को नहीं ले जा सके थे। इस कारण से इसकी सुरक्षा हो सकी थी।
       डिडिनेश्वरी का एक नाम मल्लिका भी है। 'मल्लालपतन' जो 'मल्लिकापत्तन' का परिवर्तित नाम है। उस समय यह नगर विशाल वैभवशाली नगर के रूप में अवस्थित था और उस समय यह देवी नगर की अधिष्ठात्री देवी थी। जिसके कारण इस देवी का एक नाम मल्लिका भी है। अनेक साधकों का मत है कि मल्हार एक सिद्धशक्तिपीठ भी है ।यहाँ रात्रि में विश्राम करने पर पायल और घुंघरु के मंदस्वर  झंकृत होते हैं।इस सत्य का साक्षात्कार राधोगढ़ के साधक 'बाबादीप',  कामाख्या के साधक रामजी मिश्र और मुंगेर के युवा तांत्रिक बलराम तिवारी ने प्रत्यक्ष किया है। जिसकी पुष्टि स्थानीय पुजारी श्री चौबे जी भी  करते हैं। 
        मल्हार में कुछ गुप्त साधक अब भी हैं । जिनके पास अनेक तांत्रिक सिद्धियाँ हैं । किंतु उनकी गुढ़ता, गंभीरता और अलौकिक जानकारी नहीं हो पाती है। उन्हें कुछ  गोपनीय सिद्धियाँ भी माँ की कृपा से प्राप्त है । जिसे वे देेेवी माँ की प्रेरणानुसार वे कार्य करने की चेष्टा करते हैं। और विषम परिस्थिति में भी कार्य की संपन्नता करा देते हैं जो उनके सिद्धि को प्रमाणित करते हैं ।वे अनेक रोगों का शमन भी देवी की विभूति से करवाते हैं।
        मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं ,पर मूर्ति शिल्पशास्त्र के अनुसार डिडिनेश्वरी माई ( डिड़िनदाई)  की प्रतिमा कलचुरी काल की 10-11वीं  शताब्दी की ही है। देवी 4 फीट की ऊंचाई की गहरे काले रंग की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित पद्मासन मुद्रा में तपस्या करती हुई, एक राजकन्या है । जिसका कटिप्रदेश पतली और कुंचन(उरोज) समुन्नत प्रतिमा है। जो उसे सोड्शी प्रतीत कराती है।  जो अपने पूर्ण यौवन में है। जिसने सिर पर छत्र धारण की हुई है। जो उन्हें राजकन्या होने का एहसास कराती है। तो सिर के पीछे स्थित प्रभामंडल होने से उन्हें देवी के रूप में प्रकट करती है। सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल, गले में हार , भुजाओं में बाजूबंद, पैरों में पायल, ललाट में बिंदी आदि सोलह श्रृंगार की हुई दिव्य अलौकिक प्रतिमा हैं। जिसे ध्यान से देखने पर सुबह बालिका दोपहर में युवतीऔर रात्रि में महिला की आभा लिए स्पष्ट प्रतीत होती है। पादपृष्ठ में दोनों जानुओं के नीचे सिंह निर्मित होने से इसे कुमारी (पार्वती) की, शिव को पति रूप में प्राप्त करने की पार्वती  की प्रतिमा प्रतीत होती है, जिसने भगवान शिव को पति रूप में पाने  तपस्या करती हुई, उन्हें विवश कर दिया था।इसीलिए यह मान्यता है कि कोई भी युवती अपने इच्छितवर की प्राप्ति चाहते हैं। वे  इनकी दर्शन और मनौती बाँधते हैं और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित कराती हैं आप उनकी तेज को स्पष्ट रूप से सुबह जागृत अवस्था में दोपहर में शांतमुद्रा में और रात्रिकालीन आरती में  चेहरे में तेज प्रभामंडल को देख सकते हैं ।          इस मंदिर को राज्य सरकार ने  1987 में संरक्षित घोषित किया था जिसे अब ट्रस्ट बनाकर संरक्षणमुक्त  कर दिया है।
                                 हरि सिंह क्षत्री(मल्हारवाले)
                                          मार्गदर्शक
                             जिला पुरातत्त्व संग्रहालय कोरबा
                                     मो0  9827189845
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रविवार, 21 अप्रैल 2024

मर्यादित जीवन ही श्रेष्ठता का पर्याय बन सकता है।

शादी और  अन्य उत्सव  क्या सादगी से नहीं हो सकती है ?
इससे फालतू के खर्च बचाए जा सकते हैं। साथ ही रीति-रिवाजों को भी मजबूत बनाया जा सकता है।  जब हम छोटे थे। अपने मामा गांव  सेमरताल जाते थे। तब वहां सब रिस्तेदार होते थे। कोई मेहमान नहीं। जो भी विभिन्न उत्सवों में पहुंचते थे वे सब अपने इच्छानुसार कामों में व्यस्त हो जाते जाते थे। काम करने में मजा आता था। काम करते हुए हंसी-मजाक भी होता। लड़ाइयां भी ।‌पर थोड़ी देर बाद सब फिर मिल जाते। गहरे  लगाव और जुड़ाव होता। तीजा-पोला हो या शादी या कुछ और उस स्नेह मिलन की बात ही अलग होती। वहां कोई मोहब्बत का दुकान नहीं होता। दुकान में तो व्यापार होता है। उसमें स्नेह और दुलार कहां? ममता कहां? बहुत बार सोचता हूॅं कि इस विषय पर लिखना चाहिए।
       आजकल फिल्मों की नकल करते करते हम फूहड़ता पर उतर आए हैं । ओंछी हरकतों को नजर अंदाज़ करने लगे हैं। इन सबका दोषी कौन? समाज कहाॅं गिर रहा है? और कहाॅं तक गिरती जायेगी? पैसेवालों के लिए यह शान की बातें हो सकती है परन्तु जरा विचारें उन लोगों का क्या जो सम्मान तो रखते हैं परन्तु उनके पास दिखावे के लिए अनैतिक लक्ष्मी नहीं। दो समय का भोजन ही कठिनाई से ही एकत्र कर पाते हैं।
        हम सब अपने बच्चों की उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। दिखावे के लिए जो लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं । अगर हम थोड़ी समझदारी से काम लें तो उस राशि को अपने बच्चों की बैंक एकाउंट में जमा कर सकते हैं। समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो किसी निर्धन कन्या के विवाह में सहयोग कर सकते हैं। समाज किसी की गरीबी का मज़ाक़ न बनाएं। और अमीरी का नंगा नाच भी न दिखाएं।‌ अगर हमारे पास ज्यादा संपत्ति है तो जनकल्याणकारी योजनाओं में उन्हें लगाएं।  यह सनातन धर्म है जहां कर्मों कि लेखा-जोखा रखा जाता है। वही हमारे साथ जाता है। बांकि यहीं शेष रह जाता है।
       फिर इसे कोई रुढ़िवादी कहे या कुछ और समाज को सम्मान  की समानता के लिए कुछ करना चाहिए। ऐसा मेरा विचार है। कुछ चीजें हम सब मिलकर कर सकते हैं । जैसे -
🌹 कोई प्री वैडिंग शूट नहीं होना चाहिए
🌹 दुल्हन शादी में लहंगे की बजाय साड़ी पहनना चाहिए।
🌹 मैरिज लॉन में ऊलजुलूल अश्लील कानफोड़ू संगीत की बजाय हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजना चाहिए।‌
🌹 वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहना चाहिए।
🌹 वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को उठाकर उचकाने वालों को विवाह से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।
🌹 पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर देने के बाद कोई उन्हें रोके टोके नहीं।
🌹 कैमरामैन को फेरों आदि के चित्र दूर से लेना चाहिए न कि बार-बार पंडितजी को टोकना चाहिए। वे देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में विवाह सम्पन्न कराते हैं,न कि वह किसी फिल्म की शूटिंग कराते हैं। ऐसे कृत्यों से आवाहित देवगण नाराज होते हैं। नतीजा विवाह के बाद  ऐसे जोड़ें और उनके परिवार अनेक प्रकार की विपत्ति में फंस जाते हैं। फिर अनेक प्रकार के दोषारोपण एक दूसरे पर करते हैं।‌ और विवाह विच्छेद तक की स्थिति बन जाती है। आजकल तो अधिकांश जोड़ों को तो संतान तक की समस्या से जूझना पड़ता है।
🌹 दूल्हा दुल्हन के द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाना चाहिए।‌
🌹 विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो जाना चाहिए।जिससे किसी भी मेहमानों को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान न होना पड़े।
इसके अतिरिक्त मेहमानों को अपने घर पहुंचने में मध्य रात्रि तक का समय न लगे और असुविधा न हो।
🌹 नवविवाहित को सबके सामने.. आलिंगन के लिये कहने वाले को तुरंत विवाह से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।
🌹 विवाह में किसी प्रकार का मांस मदिरा वर्जित होना चाहिए, विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है, मांस मदिरा देखकर देवी देवता रूष्ट होकर दूल्हे दुल्हन को बिना आशीर्वाद दिये ही चले जाते हैं।

समाज सुधार करने के लिये सुंदर सुझाव हो सकता है
सभी के लिये अनुकरणीय भी !!
ऐसे ही हमें अन्य रीति-रिवाजों पर भी कार्य करना चाहिए
🙏🏻शादी एक पवित्र बंधन है..  और रीति-रिवाज को निभाने में मर्यादाओं का पालन करना चाहिए।🙏🏻
अपनी पुरानी परंपरा ही ठीक है.....दिखावे से बचें।
सनातन धर्म की जय हो।
जय श्री राम 🚩

बुधवार, 27 मार्च 2024

चींटियों का संसार

                                 दुर्गाछी का घर
                           चींटियों की दुनिया 
           काली चींटी, लाल चींटी, दुर्गाछी , मटारा , चांटा,आदि। ऐसे ही कभी-कभी समूह में कुछ ही समय के लिए दिखने वाली छोटी काली चींटी पता नहीं कहां से आती हैं और कहां चली जाती हैं। बड़े आकार के काली चींटी भी समूह में आती हैं। पर ये दोनों ही सीधे होते हैं कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। परंतु छोटी-छोटी लाल चींटियों की समूह या लाल माटा(मटारा) ये आक्रामक होती हैं और और कटीली तथा जहरीली भी।
                               लाल माटा (मटारा )
काली चींटियों में दुर्गाछी चींटियां ही जहरीली और आक्रामक होती हैं। इनके समूह द्वारा तो मैंने कोबरा सांप को भी घेर कर मारकर खाने तक की स्थिति देखा है। 
             इनसे एक शिक्षा ली जाती है कि जब आप आकार में छोटे हैं तो अपनी समूह को बड़ा कीजिये, और समूह की शक्ति से ताकतवर को पराजित किया जा सकता है। यह सामर्थ्य अवगत करवाइये।
             सीधे-सादे काली चींटी आमतौर पर घरेलू होती हैं। जबकि लाल चींटी आमतौर पर जंगली और जहरीली। काली चींटी दुर्गाछी ही जंगली होती हैं इसलिए आक्रामक होती हैं। 
                           दुर्गाछी चींटियों की कतार
             चींटियों की तीन भाग होती हैं पहला मुख दुसरा पेट और तीसरा स्टोर रूम । काली चींटी मीठा भोजन करती हैं । आंटा खाती हैं और रोटियां और चांवल भी, जबकि लाल छोटी चींटी जमीन के अंदर ठंडे स्थान पर रहना पसंद करती हैं । इनके  स्टोर रूम शरीर के तीसरे भाग में मीठे तरल पदार्थ होता है।वहीं लाल माटा (मटारा) आमतौर पर आम के पेड़ों पर घोंसला बना कर रहती हैं। इनके स्टोर रूम तीसरे भाग में खट्टे तरल पदार्थ होता है। जबकि काली दुर्गाछी चींटियों के तीसरे भाग रासायनिक पदार्थ से भरी हुई होती हैं। ये जहरीली होती हैं। इनके काटने से तेज जलन होती है, ज्यादा चींटियों के काटने से तेज बुखार हो सकता है और मौत भी।
                कोरबा के वनांचल में एक प्रकार की और चींटियां पाई जाती हैं , ये चींटियां भी पेड़ों में पाई जाती हैं परंतु ये चींटियां पेड़ों पर माटा की तरह पत्तियों से घर नहीं बनाती हैं वरन ये पेड़ों पर मिट्टी के घोंसला बनाती है । इनका समूह जीतना बड़ा होता है उतना ही बड़ा उनका घरौंदा भी होता है । ये घोंसला पूर्णतः सुरक्षित और वातानुकूलित होती है। अंदरुनी भाग में मादा चींटियां अपने अंडों की सुरक्षा करती हैं। 
          चींटी फोरमिसिडाए नामक जीववैज्ञानिक कुल में वर्गीकृत है। इस कुल की 12,000 से अधिक जातियों का वर्गीकरण किया जा चुका है और अनुमान है कि इसमें लगभग 10,000 और जातियाँ हैं। इनका विश्व के पर्यावरण में भारी प्रभाव है, जिसका चींटी  शास्त्री गहरा अध्ययन करते हैं। रानी चींटी की उम्र लगभग 20 साल होती है जबकि अन्य चीटियां 45 से 50 दिन का ही जीवन जी पाती है  
           मान्यतानुसार अगर आपको अपने घर में काली चींटियां दिखाई दें तो इसका मतलब है कि आपके जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है। यह सौभाग्य की निशानी की तरह है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपके घर में हर समय चींटियां रहें। जब आप काली चींटियों को देखते हैं तो इसका मतलब है कि आपके जीवन में कुछ अलग हो रहा है। उनका स्वागत करने के लिए आप आटा छिड़क सकते हैं। एक बार जब आपके इष्ट देव को पता चल जाएगा कि आपको संदेश मिल गया है, तो चींटियां अपने आप चली जाएंगी।
           अगर आपको अपने घर में लाल चींटियां दिखाई दें तो इसका मतलब यह हो सकता है कि पैसों को लेकर कुछ बुरा हो सकता है। अचानक किसी समस्या के कारण आपको पैसे उधार लेने पड़ सकते हैं। चींटियां शनि देवता का संकेत हैं, जिससे आपको सावधान रहना चाहिए और जो हो रहा है उस पर ध्यान देना चाहिए। लाल चींटियों को अक्सर एक बुरे संकेत के रूप में देखा जाता है। इनके आने का मतलब आपके घर में कंगाली आने वाली है । ऐसी मान्यता है।
            आमतौर पर लोग इन चींटियों से तुरंत छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसा करने से बचना चाहिए । यदि आप शनि देवता में विश्वास रखते हैं, तो आपको उनके भेष में आने वाली चींटियों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। इसके बजाय, आप चींटियों को भगाने के लिए नींबू, तेज पत्ता, काली मिर्च या लौंग जैसी चीजों का उपयोग कर सकते हैं। जब चींटियां इन चीज़ों को देखेंगे तो समझ जाएंगे कि आपको उनका संदेश मिल गया है और वे चली जायेंगी।