रविवार, 21 अप्रैल 2024

मर्यादित जीवन ही श्रेष्ठता का पर्याय बन सकता है।

शादी और  अन्य उत्सव  क्या सादगी से नहीं हो सकती है ?
इससे फालतू के खर्च बचाए जा सकते हैं। साथ ही रीति-रिवाजों को भी मजबूत बनाया जा सकता है।  जब हम छोटे थे। अपने मामा गांव  सेमरताल जाते थे। तब वहां सब रिस्तेदार होते थे। कोई मेहमान नहीं। जो भी विभिन्न उत्सवों में पहुंचते थे वे सब अपने इच्छानुसार कामों में व्यस्त हो जाते जाते थे। काम करने में मजा आता था। काम करते हुए हंसी-मजाक भी होता। लड़ाइयां भी ।‌पर थोड़ी देर बाद सब फिर मिल जाते। गहरे  लगाव और जुड़ाव होता। तीजा-पोला हो या शादी या कुछ और उस स्नेह मिलन की बात ही अलग होती। वहां कोई मोहब्बत का दुकान नहीं होता। दुकान में तो व्यापार होता है। उसमें स्नेह और दुलार कहां? ममता कहां? बहुत बार सोचता हूॅं कि इस विषय पर लिखना चाहिए।
       आजकल फिल्मों की नकल करते करते हम फूहड़ता पर उतर आए हैं । ओंछी हरकतों को नजर अंदाज़ करने लगे हैं। इन सबका दोषी कौन? समाज कहाॅं गिर रहा है? और कहाॅं तक गिरती जायेगी? पैसेवालों के लिए यह शान की बातें हो सकती है परन्तु जरा विचारें उन लोगों का क्या जो सम्मान तो रखते हैं परन्तु उनके पास दिखावे के लिए अनैतिक लक्ष्मी नहीं। दो समय का भोजन ही कठिनाई से ही एकत्र कर पाते हैं।
        हम सब अपने बच्चों की उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। दिखावे के लिए जो लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर देते हैं । अगर हम थोड़ी समझदारी से काम लें तो उस राशि को अपने बच्चों की बैंक एकाउंट में जमा कर सकते हैं। समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो किसी निर्धन कन्या के विवाह में सहयोग कर सकते हैं। समाज किसी की गरीबी का मज़ाक़ न बनाएं। और अमीरी का नंगा नाच भी न दिखाएं।‌ अगर हमारे पास ज्यादा संपत्ति है तो जनकल्याणकारी योजनाओं में उन्हें लगाएं।  यह सनातन धर्म है जहां कर्मों कि लेखा-जोखा रखा जाता है। वही हमारे साथ जाता है। बांकि यहीं शेष रह जाता है।
       फिर इसे कोई रुढ़िवादी कहे या कुछ और समाज को सम्मान  की समानता के लिए कुछ करना चाहिए। ऐसा मेरा विचार है। कुछ चीजें हम सब मिलकर कर सकते हैं । जैसे -
🌹 कोई प्री वैडिंग शूट नहीं होना चाहिए
🌹 दुल्हन शादी में लहंगे की बजाय साड़ी पहनना चाहिए।
🌹 मैरिज लॉन में ऊलजुलूल अश्लील कानफोड़ू संगीत की बजाय हल्का इंस्ट्रूमेंटल संगीत बजना चाहिए।‌
🌹 वरमाला के समय केवल दूल्हा दुल्हन ही स्टेज पर रहना चाहिए।
🌹 वरमाला के समय दूल्हे या दुल्हन को उठाकर उचकाने वालों को विवाह से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।
🌹 पंडितजी द्वारा विवाह प्रक्रिया शुरू कर देने के बाद कोई उन्हें रोके टोके नहीं।
🌹 कैमरामैन को फेरों आदि के चित्र दूर से लेना चाहिए न कि बार-बार पंडितजी को टोकना चाहिए। वे देवताओं का आह्वान करके उनके साक्ष्य में विवाह सम्पन्न कराते हैं,न कि वह किसी फिल्म की शूटिंग कराते हैं। ऐसे कृत्यों से आवाहित देवगण नाराज होते हैं। नतीजा विवाह के बाद  ऐसे जोड़ें और उनके परिवार अनेक प्रकार की विपत्ति में फंस जाते हैं। फिर अनेक प्रकार के दोषारोपण एक दूसरे पर करते हैं।‌ और विवाह विच्छेद तक की स्थिति बन जाती है। आजकल तो अधिकांश जोड़ों को तो संतान तक की समस्या से जूझना पड़ता है।
🌹 दूल्हा दुल्हन के द्वारा कैमरामैन के कहने पर उल्टे सीधे पोज नहीं बनाना चाहिए।‌
🌹 विवाह समारोह दिन में हो और शाम तक विदाई संपन्न हो जाना चाहिए।जिससे किसी भी मेहमानों को रात 12 से 1 बजे खाना खाने से होने वाली समस्या जैसे अनिद्रा, एसिडिटी आदि से परेशान न होना पड़े।
इसके अतिरिक्त मेहमानों को अपने घर पहुंचने में मध्य रात्रि तक का समय न लगे और असुविधा न हो।
🌹 नवविवाहित को सबके सामने.. आलिंगन के लिये कहने वाले को तुरंत विवाह से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।
🌹 विवाह में किसी प्रकार का मांस मदिरा वर्जित होना चाहिए, विवाह में देवी देवताओं का आवाह्न किया जाता है, मांस मदिरा देखकर देवी देवता रूष्ट होकर दूल्हे दुल्हन को बिना आशीर्वाद दिये ही चले जाते हैं।

समाज सुधार करने के लिये सुंदर सुझाव हो सकता है
सभी के लिये अनुकरणीय भी !!
ऐसे ही हमें अन्य रीति-रिवाजों पर भी कार्य करना चाहिए
🙏🏻शादी एक पवित्र बंधन है..  और रीति-रिवाज को निभाने में मर्यादाओं का पालन करना चाहिए।🙏🏻
अपनी पुरानी परंपरा ही ठीक है.....दिखावे से बचें।
सनातन धर्म की जय हो।
जय श्री राम 🚩

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