मंगलवार, 6 जुलाई 2021

कलचुरी कालीन तुम्मान मंदिर में राम

कलचुरी कालीन तुम्मान मंदिर में  दशावतार
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  शिव मंदिर तुम्मान में दशावतार
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      जिला मुख्यालय कोरबा से कटघोरा जटगा-पसान मार्ग पर 52 किलोमीटर दूर 22•34'30" उत्तरी अक्षांश और 82•25'19"  पूर्वी देशांतर पर समुद्र तल से1422.87 फीट की ऊँचाई पर तुम्मान(तुमान) स्थित वनकेश्वर  महादेव मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी राजा रत्नदेव प्रथम  के द्वारा अपने शासनकाल 1045-1065 ईस्वी के मध्य करवाया गया था।  कलचुरी राजवंश वैसे तो शैव मतावलम्बी थे। परन्तु वनकेश्वर महादेव मंदिर के द्वारशाख पर बने हुए दशावतार को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि वे अब वैष्णव धर्म को भी अंगिकार करने लगे थे।इसीलिए यहाँ के शिवमंदिर के द्वारशाखा में भगवान विष्णु के दशावतारों को भी स्थान देते हुए सुन्दर शिल्पांकन करवाए थे।  
      पश्चिमाभिमुख सप्तरथ शैली में निर्मित यह मंदिर स्थानीय बलुवे पत्थरों से निर्मित है।  मंदिर के द्वारशाख के नवग्रह समूह में क्रमशः ब्रह्मा ,शिव और विष्णु जी बने हुए हैं। जिनके मध्य में शिव जी के होने से यह मंदिर शिव जी को समर्पित है। इसके दाएँ भाग में क्रमशः मत्स्य, कुर्म, वराह, नरसिंह और वामन भगवान का शिल्पांकन है जबकि बाएँ पार्श्व में क्रमशः राम, परशुराम, कृष्ण , बुद्ध और कल्कि भगवान का शिल्पांकन है।  यहाँ शिल्पकार ने परशुराम से पहले भगवान राम को शिल्पांकित किया गया है।  यह ध्यान देने योग्य है। जबकि परशुराम जी का  अवतार भगवान राम से पहले हुआ था तो नियमानुसार पहले परशुराम जी का शिल्पांकन होना चाहिए था।  इस प्रकार यहाँ पर रामायण कालीन दो पात्रों का सुंदर शिल्पांकन है।
        तुम्मान ,हैहयवंशीय कलचुरी राजवंश की दक्षिण कोसल में प्रथम राजधानी रही है। कलचुरी शासक कोकल्लदेव के सबसे छोटे पुत्र कलिंगराज ने  इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त किया था और इसे राजधानी भी बनाया था।  पर वे यहाँ रुके नहीं , वे वापस त्रिपुरी  लौट गए थे। उसके बाद उनके पुत्र कमलराज ने इस क्षेत्र पर शासन किया। उसके बाद बाद उसके पुत्र रत्नदेव प्रथम  के शासनकाल में यह क्षेत्र 1050 ईस्वी तक राजधानी बना रहा । फिर उन्होंने अपने को त्रिपुरी के सामंत के रूप में पृथक करते हुए ,अपने नाम से रतनपुर को अपना राजधानी बनाये। 
         1165-1170 ईस्वी तक जाजल्लदेव द्वितीय के समय  यह पुनः कलचुरी राजवंश की राजधानी बनी।  उस समय यहाँ बहुत से निर्माण कार्य भी हुआ।  जटाशंकरी नदी के बांई तट पर सतखण्डा  महल भी बनाए गये थे।  यहाँ के शिवमंदिर भारत सरकार के द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। यहाँ और भी बहुत से मंदिरों के अवशेष बिखरें पड़े हैं।

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