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कोरबा जिले के कोरबा विकासखंड अंतर्गत कोरबा से लेमरू मार्ग पर बाल्को होते हुए जिला मुख्यालय से लगभग 22.8 किलोमीटर दूर ग्राम गहनिया का आश्रित गाँव खेतार है। यह गाँव प्रकृति की गोद में बसा एक खूबसूरत गाँव है । चारों तरफ से जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ यह गाँव, अपनी नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण है। गाँव केसलानाला के दाहीने तट पर बसा था। जो अब नाले से लगभग एक किलोमीटर दूर पीछे खिसक गई हैं। केसलानाला, शुद्ध और पीने योग्य साफ जल से लबालब रहती है। यह नाला हसदेव नदी की सहायक जलधारा है, जो सदानीरा है। गाँव में चंद घर ही हैं। जो पूर्णतः जनजातिय लोगों का गाँव है ।जहाँ मांझी और मझवार जनजाति की अधिकता है। यह नाला गाँववालों की कृषि के मुख्य आधार भी है। गाँव के मध्य एक इमली का पेड़ है जिसके आसपास ही गाँव बसा हुआ है।
गाँव तक जाने के लिए कच्चा रास्ता बना हुआ है। जिसमें छोटे-बड़े पत्थरों को डाल कर कीचड़ से बचने का उपाय किया गया है। आज भी यहाँ पक्के मार्ग की राह गाँववालों के तरफ से देखा जा रहा है। पथरीला राह, जिसमें संभलकर यात्रा करनी पड़ती है। गाँव में एक एकल शिक्षक विद्यालय है। जिसमें प्राथमिक शिक्षा तक अध्यापन कार्य होता है। यहाँ पढ़ाने के लिए कोरबा के मुड़ापार से एक शिक्षिका जाती हैं, जिनका नाम आशा सिंह सूर्यवंशी हैं। जब मैं गाँव पहुंँचा , दो अक्टूबर का दिन था। गाँधी और शास्त्री जी की जयंती थी। शिक्षिका, बच्चों की रैली निकालकर गाँव की भ्रमण करा रही थीं। देशभक्ति के नारे लगवाए जा रहे थे। जिसकी आवाजें आ रही थीं। मुझे अपना बचपना याद आ गया ।बच्चों के आवाज के पीछे-पीछे मैं भी स्कूल पहुंँच गया। तब तक रैली स्कूल पहुँच चुकी थी। बच्चे, विद्यालय में जा चुके थे। स्कूल के एक कमरे में बच्चे दरी बिछाकर के जमीन पर बैठे हुए थे। एक बच्चा गांँधी जी बना हुआ था। जिसने कागज के बने हुए सफेद चश्मा पहन रखे थे, एवं हाथ में लाठी भी रखे हुए थे । विद्यालय पहुँचकर जब सब जमीन में दरी में बैठ गए उसी समय मैं भी पहुंँचा । गाँव के पुराने स्थलों की जानकारी लेने के लिए मैं विद्यालय पहुंँचा था। पर वहाँ शिक्षक के रूप में शिक्षिका मिली। उन्होंने ऐसे स्थलों की जानकारी के बारे में अनभिज्ञता प्रकट की। तब उनसे अनुमति लेकर बच्चों से बात करने लगा। उनसे बात कर अच्छा लगा। फिर उन्हें जमीन में बैठकर गांँधीजी और शास्त्री जी के जीवन के बारे में बताने लगा। बच्चों को गणेश जी की मातृ-पितृ भक्ति की कहानी बताकर उन्हें धरती के साक्षात भगवान होने के बारे में बताने लगा। अंत में अपने साथ बिस्किट ले गया था, उसे बच्चों को वितरित किया। बच्चे और शिक्षिका बहुत खुश हो गए ।
गाँव में कोई अस्पताल नहीं है। गाँव में आज भी बीमार पड़ने पर लोग गाँव के बैगा के पास ही जाते हैं। गाँव के बैगा का नाम है , बनवारी मांझी । गाँव में पहुँचा तो इमली पेड़ के नीचे बने घर में एक व्यक्ति बीमार था। उसे झाड़-फूंक के लिए बनवारी मांझी को बुलाया गया था । मैं भी उसकी इलाज पद्धति को देखना चाहता था। बनवारी बैगा , बांस की बनी एक डंडे को शक्ति का प्रतीक मानकर रखे हुए थे। डंडा बहुत पुराना था। तेल और धुएँ के प्रभाव से काला हो गया था। वह तंत्र-मंत्र और डंडे की शक्ति से इलाज करने का दावा करते हैं। मुझे उनके साथ जाने की अनुमति नहीं मिला। इसलिए इस बारे में ज्यादा नहीं बता सकता हूँ। गाँव में एक बच्ची आँगनबाड़ी केन्द्र से वितरण किए गए पोषक खाद्य पदार्थ को लेकर घुम रही थी।
इसलिए मैं उस समय का लाभ लेने के लिए गाँव के ही एक युवक अमर मांझी को लेकर वहाँ के पिकनिक स्थल जाने का निश्चय किया। इमली पेड़ से दाहिने तरफ लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर दूर पैदल चलकर एक नाले को पार कर उस पर बने दीहारीन झूँझा पहुँचा। दीहारीन झूँझा मैदानी भाग पर बना हुआ एक खूबसूरत जलप्रपात है। यह जलप्रपात 22• 28' 58" उत्तरी अक्षांश और 82• 50 '32" पूर्वी देशांतर पर समुद्र तल से 1337.57 फीट की ऊंँचाई पर स्थित है ।यह लगभग 25 मीटर की दूरी पर छोटी-बड़ी सात जलधाराएंँ बनाकर जलप्रपात के रूप में गिरती हैं । जलप्रपातों की ऊँचाई ज्यादा नहीं है ,पर ये अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सतत जलधारा के लिए चित्ताकर्षक हैं। गाँववाले इसे दीहारीन झाँझा के नाम से जानते हैं , पर इसे यह नामकरण कैसे पड़ा कोई नहीं जानते हैं । मेरे मतानुसार अपनी सात धाराओं के रूप में गिरने के कारण इन जलधाराओं को सतधारा जलप्रपात ,खेतार कहना ज्यादा उचित जान पड़ता है।
यदि गाँव तक पक्की सड़कें बन जाए तो यहाँ ज्यादा पर्यटक पहुँच सकते हैं। इससे गाँववाले ज्यादा लाभान्वित हो सकते हैं। जहाँ तक उस बीमार व्यक्ति के बीमार होने का है , मेरे मतानुसार इमली का पेड़ इसके लिए ज्यादा उत्तरदाई लगता है , क्योंकि इमली का पेड़ 24 घंटे कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन करती रहती है। ऐसे में उसके नीचे रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य खराब होने की संभावना ज्यादा रहती है। इस दिशा में जन जागरूकता की भी आवश्यकता है । तो सप्ताह में वहाँ किसी न किसी एक स्वास्थ्य कर्मी का दौरा कराया जाना भी उचित होगा। जिसके बारे में शासन-प्रशासन को ध्यान देने की आवश्यकता है।
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