सर्वमंगला दाई मंदिर की अज्ञात, रोचक और ज्ञानवर्धक कहानी
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जिला मुख्यालय कोरबा में हसदेव मंदिर के दाहिने तट पर विराजित माँ सर्वमंगला देवी कोरबा जमींदार परिवार की कुलदेवी है। जब कोरबा, कोरवाडीह कहलाता था, तब यहाँ कोरबा जमींदार के द्वारा राजमहल और सर्वमंगला मंदिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी सन् 1520 ईसवी में दीवान जोगीराय (जोगीदास )जी के द्वारा करवाया गया था। सर्वप्रथम स्थापित सर्वमंगला मंदिर
पहले सर्वमंगला मंदिर क्षेत्र दुरपा गाँव के निकट सघन वनों से आच्छादित था। यहीं एक समतल जगह में चबूतरा बनाकर एक बैगा द्वारा, देवी की स्थापना जनजातिय मान्यता अनुरूप स्थानीय पत्थर पर घी और बंदन लगाकर, इस क्षेत्र की रक्षक देवी के रूप में स्थापना किया गया था। प्रारंभ में यह देवी यहाँ स्थित गुफा मेंं विराजमान थी । प्रवेशद्वार , सर्वमंगला मंदिर दुरपा
तब कोरबा के तत्कालीन मुखिया और उनके वंशजों के द्वारा इस सघन वन क्षेत्र में नाव द्वारा हसदेव नदी को पार कर सर्वमंगला दाई की पूजा करने आते-जाते थे। यह देवी कोरबा इलाके की रक्षक, आराध्य और कुलदेवी के रूप में मान्य होकर, स्थापित की गई थी। गर्भगृह में स्थापित देवी
पीढ़ी दर पीढ़ी इस देवी की मान्यता बढ़ती चली गई। इनसे राजपरिवार के सदस्यों द्वारा जो भी इच्छा प्रकट की जाती, उसे देवी पूरा कर देती थीं। इससे देवी के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ती चली गई । धीरे-धीरे वे केवल राज परिवार की ही नहीं, वरन अन्य लोगों की भी मनौतियाँ और इच्छाएँ पूरी करने लगीं ।
प्रवेशद्वार, रानीमहल कोरबा
इससे वह धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगीं और सबकी मंगलकामनाओं की पूर्ति करने के कारण सर्वमंगला माई कहलाने लगीं। माँ सर्वमंगला देवी का मंदिर जिला मुख्यालय कोरबा से महज 6 किलोमीटर दूर कोरबा-कुसमुंडा मार्ग पर हसदेव नदी के दाहिने तट पर नहर और नदी के मध्य भाग में 22•21' 33" उत्तरी अक्षांश और 82• 42' 60" पूर्वी देशांतर में समुद्र तल से 559.94 फीट की ऊँचाई पर स्थित है । अब यहाँ रेल और सड़क दोनों के ही लिए सेतु का निर्माण हो गया है। जिसे सर्वमंगला सेतु के नाम से भी जाना जाता है।
सदस्य, राजपरिवार कोरबा
राज परिवार के सदस्यों श्रीमती निर्मला देवी सिंह और रवि भूषण प्रताप सिंह जी का कहना है कि कोरबा जमींदार, सर्वमंगला माई की भव्य मंदिर बनवाना चाहते थे। अंत वे रतनपुर से महामाया के द्विमुखी प्रतिमा को हाथी पर सम्मान पूर्वक बैठाकर ला रहे थे। उस समय रतनपुर से कोरवाडीह के लिए मार्ग कनकी होते हुए ही था । आवागमन हेतु कोई सीधा और सरल मार्ग नहीं था। यह रास्ता घनघोर जंगलवाला था। रतनपुर से कनकी पहुँचते तक रात हो चुकी थी। अतः रात कनकी में ही विश्राम करने का विचार तात्कालिन जमींदार भारत सिंह जी ने किया । उन्होंने महामाया की मूर्ति को हाथी के पीठ से उतरवाकर नीचे रखवा दिये। महामाया माई, कनकी
प्रातः होने पर कोरबा जाने तैयारी किया जाने लगा। हाथी को नीचे बिठाकर, हाथी के पीठ पर महामाया की मूर्ति को रखा गया।
द्विमुखी महामाया माई ,कनकी
फिर हाथी को उठाने का प्रयास किया गया, पर वह हाथी उस महामाया की मूर्ति को लेकर, उठ न सका तब फिर दूसरे हाथी को मंगाकर उस पर भी महामाया की मूर्ति रखी गई । पर वह दूसरा हाथी भी महामाया माई की मूर्ति को लेकर न उठ सका। उस दिन सबने दिनभर प्रयास किये ,पर लाख मेहनत के बाद भी वे महामाया की मूर्ति को वहाँ से कोरबा ले जाने में सफल नहीं हो सके। इस तरह उन्हें दूसरी रात भी सबको वहीं विश्राम करना पड़ा। उसी रात जमींदार भारत सिंह जी को महामाया माई ने स्वप्न में आकर कहा कि मैं कनकी के शिवजी को देखकर बहुत प्रभावित हुई हूँ। अब मैं यहीं रहना चाहती हूँ। तुम यहीं आकर मेरी पूजा किया करना । कोरबा जमींदार भारत सिंह जी जिस मूर्ति को सर्वमंगला मंदिर कोरबा में सर्वमंगला माँ की मूर्ति के रूप में स्थापित करना चाहते थे, अब वे कनकी में ही कनकेश्वर महादेव मंदिर के निकट ही माँ की इच्छानुसार वहीं स्थापित कर दिया गया। कनकेश्वर महादेव , कनकी
आज वह वहीं विराजमान हैं। इसी तरह जमींदार जागेश्वर प्रसाद जी को भी सर्वमंगला माँ और मंदिर के ऊपर अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने एक पेड़ के नीचे (जो वर्तमान मंदिर के पीछे थे) एक खपरैल छत वाला मंदिर बनवाकर देवी को स्थापित करवाया। मंदिर के खंडहर यहाँ अभी भी बिखरे पड़े हैं। जमींदार जागेश्वर प्रसाद के मृत्यु के बाद उनकी धर्मपत्नी रानी धनराज कुंवर देवी ने जमींदार पद संभाली । तब उन्होंने देवी के पुजारी बैगा के अनुरोध पर पक्का मंदिर बनवाकर देवी माँ को स्थापित करवाया।
महामाया मंदिर, पुरानी बस्ती, कोरबा
वर्तमान सर्वमंगला मंदिर का गर्भगृह रानी धनराज कुंवर देवी जी के द्वारा ही बनवाया गया था । जो महामाया मंदिर ,पुरानी बस्ती, कोरबा की ही तरह दिखती थी। यहाँ यह मान्यता रही है कि देवी की सर्वप्रथम पूजा कोरबा जमींदार व जमीदारीन साहिबा ही करते थे। तत्पश्चात् ही जमींदार परिवार के अन्य बंधु-बांधव पूजा करते थे। बाहरी व्यक्ति कम ही पूजा करने के लिए जाते थे। उस समय से ही नवरात्रि में पूजा का विशेष आयोजन होता आ रहा है। इसका पूरा खर्च रानी धनराज कुंवर उठाती थीं। यह पूजा बैगा ही संपन्न कराया करते थे और संपूर्ण चढ़ावे पर उस बैगा पुजारी का ही अधिकार होता था । मंदिर के गर्भ गृह में केवल राज परिवार के सदस्य और बैगा ही पूजा कर सकते थे। किसी ब्राह्मण पुजारी को गर्भ गृह में जाने की अनुमति नहीं थी। वे पूजा भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनके गर्भ गृह में बकरे व भैंस की बलि दी जाती थी। अब तो बलि प्रथा बंद है। तब भी मंदिर के पीछे अहाते के बाहर बकरे की बलि देने वाले, बलि दे ही देते हैं। बलि प्रथा की समाप्ति के बाद सर्वमंगला मंदिर के साथ ही साथ ,अन्य शक्तिपीठों पर भी ब्राह्मण पुजारियों का जमावड़ा होने लगा। सर्वमंगला मंदिर में भी अब ब्राह्मण पुजारी कमाने बैठने लगे हैं। अब तो ऐसे मंदिरों की कमाई खाने वाले पुजारीगणों द्वारा, इन मंदिरों को, अपने पुरखों का बनाया मंदिर , बताया जाने लगा है। ताकि उनकी कमाई हाथ से न चली जाये। जिस चढ़ावे पर आदिवासी बैगा का अधिकार सिद्ध था,उन्हें उसका अधिकार नहीं मिलता है। कोरबा में स्थित मंदिरों के देखभाल के लिए तरदा गाँव की भूमि रानी साहिबा द्वारा दान दिये गये थे। उनके नाती कुमार ज्योति भूषण प्रताप सिंह जी के द्वारा ट्रस्ट भी बना दिया गया था। परंतु वर्तमान में सर्वमंगला मंदिर पर एक ब्राह्मण परिवार का कब्जा है। श्रीमती निर्मला देवी सिंह जी का मानना है कि अन्य मंदिरों की देखभाल , दाऊ की भूमि के कमाई से, अब शायद ही किया जाता है। एक मान्यता है कि कोरबा जमींदार की तीनों देवियाँ कोसगाई, महामाया तथा सर्वमंगला माई दशहरे के दिन आपस में मिलती हैं।
महामाया माई, पुरानी बस्ती, कोरबा
यदि तीनों देवियाँ एक साथ किसी को दिख जाए तो उनके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो ही जाता है, ऐसी मान्यता है । कोरबा जमींदार के राजपुरोहित सूर्यभान प्रसाद रहे ।उनके बाद गोपाल प्रसाद फिर गोपी प्रसाद राजपुरोहित रहे । उनके द्वारा गर्भगृह के बाहर, राजपरिवार के लिए वैदिक पद्धति से पूजा-पाठ संपन्न कराया जाता था। उनके लिए दान-दक्षिणा का अलग से विधान था । उन्हें अलग से ही दक्षिणा प्रदान किया जाता था, क्योंकि सर्वमंगला मंदिर के गर्भगृह के चढ़ावे पर बैगा जनजाति के पुजारी का ही अधिकार था। कोसगाई दिए, मंदिर की पूजा आज भी एक बैगा ही करते हैं , और वहाँ के चढ़ावे पर आज भी उनका ही अधिकार है । सर्वमंगला मंदिर के गर्भ गृह में आज बलि प्रथा बंद कर दिया गया है। जबकि कोसगाई में आज भी बलि प्रथा का प्रचलन है। जिसमें इस प्रथा को मानने वाले बलि पूजा करते हैं।
पद्मनाभ स्वामी, कोरबा
सर्वमंगला मंदिर परिसर में सर्वमंगला मंदिर के अलावा राम जानकी मंदिर, हनुमान मंदिर,पद्मनाभ मंदिर, काली मंदिर ,भैरव मंदिर आदि के अलावा मंदिर के ब्राह्मण पुजारी का मकान और होटल भी है। सूर्यदेव, कोरबा
मंदिर के पास ही एक वृद्धाश्रम भी संचालित है। मंदिर परिसर से कुछ ही दूरी पर एक गुफ़ा समूह भी है । इन्हीं गुफाओं में से किसी एक गुफा से हसदेव नदी के दूसरे तट पर स्थित रानी महल के अंदर से आने-जाने के लिए एक गुप्त सुरंग भी है। जिसमें अब आवागमन पूर्णतः बंद है। यहाँ मंदिर में पूजा करने और कब्जा के लिए आज भी राजपरिवार कोरबा और पुरोहित परिवार के बीच न्यायालय में वाद चल रहा है । जबकि गर्भगृह का मूल पुजारी, बैगा जनजाति का हक मारा जा चुका है । क्योंकि उनके ही पूर्वजों ने ही मूल सर्वमंगला दाई की मूर्ति की स्थापना किये थे। विडम्बना है कि आज उन्हें ही गर्भगृह में जाने का अधिकार नहीं है। तो गर्भगृह की चढ़ावे पर अधिकार तो कल्पना मात्र है। एक दिवास्वप्न है।
महामाया, रतनपुर
मंदिर परिसर में मनोकामना ज्योति कलश भी बने हुए हैं । जिसमें हजारों भक्तों और श्रद्धालुगण अपनी-अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए, घी और तेल के ज्योति कलश प्रज्वलित कराते हैं। उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं । अगले वर्ष ज्योति कलश की संख्या और भी बढ़ जाती है। सर्वमंगला दाई,कोरबा
सर्वमंगला मांँ की ख्याति निरंतर बढ़ रही है, और मनोकामना ज्योति कलश की संख्या भी। पर आज भी राज परिवार और बैगा की मनोकामना पूरी नहीं हो पा रही है। कारण है उनके ही अधिकारों की रक्षा ,शासन और प्रशासन की नीतियों के कारण नहीं हो पा रही है। उनकी परंपरा अनुसार, उनकी पूजा-पद्धति से, उनके रीति-रिवाज के अनुसार उन्हें ही पूजा नहीं करने दिया जा रहा है। उन्हें अब भी अपनी मनोकामना पूरी होने का इंतजार है।
महामाया मंदिर, पुरानी बस्ती ,कोरबा
जब इस बारे में उनसे पूछा जाता है, तब उनकी आंखों में पीड़ा भरी क्रोध का अनोखा मिश्रण और दर्द झलक ही जाती है । लेकिन माँ सर्वमंगला दाई पर उन सबका विश्वास आज भी कायम है। यह सबेरा कभी तो आयेगी, जब हम अपनी कुलदेवी की पूजा पुनः गर्भगृह में प्रवेश कर अपनी रीति-रिवाज़ और परंपरानुसार कर पायेंगे। कोरबा जमींदारी अंतर्गत निवास करनेवाले सभी लोगों की मंगलकामनाएँ एवं कल्याण की भावना से एक आदिवासी जमींदार के द्वारा स्थापित सर्वमंगला मंदिर में आज एक ब्राह्मण पुजारी है जबकि पूर्वकाल में यहाँ की पूजा एक बैगा के द्वारा किया जाता था, जहाँ सभी पंथ के लोग दर्शन करने आते हैं। पूजा-अर्चना करते हैं , ज्योतिकलश जलवाते हैं ।वहीं माँ सर्वमंगला सबपर अपनी समान कृपा करती हैं। कोरबा जिले में माँ सर्वमंगला मंदिर समरसता के सबसे बड़े उदाहरण के रूप में सर्वमान्य देवी है।
संदर्भ:- कोरबा जमींदारी, लेखिका- श्रीमती निर्मला। देवी सिंह, नातीनबहु, रानी धनराज कुंवर विशेष आभार:- श्री रविभूषण प्रताप सिंह जी का जिन्होंने पुरानी बहुमूल्य छायाचित्र उपलब्ध कराये
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